गर न हो अंधेरा
उजाले का गुरुर हो जाएगा चूर
वैसे भी शास्वत तो अंधेरा है
यही तेरा है यही मेरा है
फिर क्यों चाहते हैं हम
इसी अंधेरे को दूर भगाना
जिंदगी को बेगाना बनाना
दरअसल,
उजाले ने रची है साजिश गहरी
सुबह शाम और दुपहरी
काम करती रहती है महरी
इसीलिए रात है उसके नाम
और जो उजाले का जपते रहते हैं नाम
उनके पास नहीं कोई काम
दीपावली पर तो अब न छलकाएं जाम
मेरी बात सुनें और गुनें
तब तक के लिए मैं तो चली
अच्छा जनाब, राम-राम
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
2 comments:
Bahut sundar sabd chitran. Deepavali ke deepakon ka prakash aapke jeevan path ko aalokit karta rahe aur aapke lekhan ka margdarshan karta rahe, yahi shubh kamnayen.
सुन्दर कविता ।
आपको व आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं ।
घुघूती बासूती
Post a Comment