Monday, September 29, 2008

बम और घुटन

बम और घुटन
थमी सांसें और मिला कफन

ख्वाहिशें हो रही हैं दफन
कहां खो गया इस देश का अमन

अब बचा है कोई ऐसा चमन
जहां लग सके मेरा मन

अब जल रहा है तन-बदन
सूना हो गया गगन

कहीं बहस तो कही विष वमन
पर सब हैं अपने में मगन

13 comments:

Udan Tashtari said...

एक गहरा कथ्य-उम्दा रचना!!

Satyendra Prasad Srivastava said...

बहुत अच्छा। सही चित्रण, सही सवाल

विजय ठाकुर said...

अच्छी रचना है, "कहीं बहस, कहीं विष वमन" साझी और सार्थक बहस जैसे खो सी गयी है।

Anonymous said...

sundar rachana, samaj me ghatit ho rahighatnao par aap ke vichar jankar achcha laga. jaisa ki Vijay ji ne likha hai ki sarthak bahes to ab kahi hoti hi nahi hai.

vishal

Anonymous said...

great Words from a great lady

संतोष अग्रवाल said...

आपके चिट्ठे पर पहली बार आया हूँ..बड़ी "खुशी" हो रही है.:) बम और घुटन पढ़ कर लगा पहली पोस्ट से ही शुरू किया जाय..सारी पोस्ट पढ़ कर ऐसा लगा...हमारा व्यक्तित्व काफी मिलता है..आपकी उमर में शायद मैं भी ऐसा ही था.. बहुत बहुत शुभकामनाएँ ...

36solutions said...

कहीं बहस तो कही विष वमन


सुन्‍दर शव्‍द संयोजन

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

आपके शब्दों का चयन,
छू गया हमारा मन
स्वागत करता आपका ये उपवन
जो है हिन्दी ब्लॉगरों का चमन

लुटाइए अपनी लेखनी का ये धन
धन्य हो सब करेंगे नमन्

Sanjeet Tripathi said...

ह्म्म,
शुभकामनाओं के साथ स्वागत है!

अभिषेक मिश्र said...

Aapki sabhi posts dekhin.Kafi saralta aur masoomeat hai inmen, jo ki aapki sacchi nidhi hain. Jeevan-sangharsh mein ise khone mat dijiega.All the Best.

khushi said...

समीर लाल जी, सत्येंद्र प्रसाद श्रीवास्तव जी, विजय ठाकुर जी, विशाल जी, शंकर बख्शी जी, संतोष अग्रवाल जी, संजीव तिवारी जी, सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी जी और संजीत त्रिपाठी जी आप सबका हृदय से धन्यवाद। आपने अपने विचारों से मेरा उत्साह बढ़ाया, सचमुच इसके लिए बेहद शुक्रिया। उम्मीद है इसी तरह सच लिखते हुए आप सभी मेरा मार्गदर्शन करेंगे।

प्रदीप मानोरिया said...

khusi nam rakh na gam ko yad kijiye
jindagee men pal har ekka lutf leejiye
you are most welcome in blog world . plz visit my blog too to enjoy hindi kavita

Pooja Prasad said...

बुरा मत मानिएगा खुशी जी। मगर, आपकी तमाम पोस्ट्स में कविता कभी उलझी लगती है और सुलझने को होती है और फिर उलझ जाती है। साहित्य के दृष्टिकोण से तो अव्वल दर्जे का या उम्दा टाइप मैं नहीं समझती कि, है। मगर, हां एक भड़ास है जो आप निकाल रही हैं। और मुझे लगता है कि महिलाएं खुल कर आस पास की स्थिति के खिलाफ बोल पाएं, सोच पाएं, कह पाएं, यह स्वागतयोग्य है।