Sunday, September 7, 2008

गाती रही तो रोती रही

गाती रही तो रोती रही
रोती रही तो भी गाती रही
छोटी रही तो सोती रही
सोती रही तो खोती रही

सोचा, जीवन में रखा क्या है
सोना और खाना
या फिर आना और यूं ही चले जाना

फिर जाना, इस जीवन में है
बहुत कुछ पाना
मैंने माना
अच्छा लिखूंगी तो मिलेगी तारीफ
और बुरा लिखूंगी तो ताना
फिर जनाब, जरा बताएं आप
क्यों बंद करूं मैं अपना गाना

6 comments:

जितेन्द़ भगत said...

हम सब भी यही सोच रहें हैं-

सोचा, जीवन में रखा क्या है
सोना और खाना
या फिर आना और यूं ही चले जाना

सही कहा।

MANVINDER BHIMBER said...

bahut achcha likha hai...sachcha bhi

Udan Tashtari said...

वाह!! जारी रखिये गाना!!

Anil Pusadkar said...

geet gata chal,o sathi gungunata chal,o mitwa re,geet gata chal

सुशील छौक्कर said...

आपका गाना हमको भी पड़ा गुनगुनाना।
सोचा, जीवन में रखा क्या है
सोना और खाना
या फिर आना और यूं ही चले जाना
बहुत उम्दा।

Reetesh Gupta said...

बढ़िया है ...बधाई